PanthNirpeksh Bharat"
written by: Khyati Srivastava
जन्म लिया है मैंने जिस माटी में,
वो कहते है इस माटी का कोई धर्म नहीं!
किस धर्म में बाँधोगे मुझे,
अरे!
इस माटी का कोई 'एक'
धर्म नहीं!!
हम सभी को भारतीय होने पर कितना गर्व है| "मेरा भारत महान" ! क्या सीना चौड़ा करके कहते है हैम सभी. पर,
क्या उस छड़ हम
इसके पीछे के मूल्यो और सिद्धांतो का एहसास कर पते है?! क्या हम इस महानता का असली तात्पर्य समझ
पाते है?!
वो गुड़ वो आदर्शो को पहचानना अत्यंत महत्व पूर्ण है, क्योकि ये हमारे देश कि वो बातें है, जिसका लोहा दुनिया ने माना है. यह गुड़ है हमारी संस्कृति, यानि हमारे संस्कार, जिसकी कृति करके हमारे कई दिग्गज भाई बंधुओं ने जग को दिखाया है
: "सभ्यता जहाँ पहले आई,
पहले जन्मी है जहाँ पे कला! अपना भारत वो भारत है जिसके पीछे संसार चला!!"
इस माटी के कई सपूतों ने इन्ही संस्कारो के कृत्यो से समस्त पृथ्वी पर
भारत के दर्शन के चिराग से रोशिनी फैलाई है, और दुनिआ को इसके आगे नमन क्रय है! चाहे वो महात्मा गांधी हो,
या स्वामी विवेकानंद, या हो शहीद भगत सिंह, या फिर एपीजे अब्दुल कलम,
या कितने ही अनेक और.
हमारे संस्कारो कि कृति, बस यही है हमारी संस्कृति कि परिभाषा, और यकीन मानिये, ऐसे किसी भी एक धर्म में बंधा नहीं जा सकता. हमें नहीं भुना चाहिए कि
"पहले जन्मी है यहाँ पे कला,
सभ्यता जहाँ पे पहले आई".
अब सबसे पहले सभ्य होने के बाद,
सबसे विकसित सभ्यता होने के बाद, माना आज हम विकाशील देश है, पर यह भी सिर्फ आर्थिक पर्याय में.
संस्कारो के मैदान में आज भी हम आधुनिक है!
ज़रूरत है कि बस हम भारतीय ये समझ पाये. हमे समझना पड़ेगा, और ऐसे सशक्त बनाने हेतु आगे एना पड़ेगा. कब तक भेद ढूंढ़ते रहेंगे हम आपस में ही,
इस धरती में राम कि मर्यादाएं भी है, और रहीम का जीवन सार भी! ये मिटटी अली कि क़ुरबानी से सीची गई है,
और कुरुक्षेत्र में श्री कृष्णा ने इसे जीवन यथार्थ से भी पोषित किआ गया है!
हम विकसित से विकाशील हुए है आज,
तो इसके कारण ढूंढ़ने पड़ेंगे! यदि, कभी मुग़ल तो कभी सुल्तानो ने लूटा है हमें, और अगर २०० साल तक अंग्रेज हमपर हुकूमत कर पाए थे, तो इसका कारन भी हमे अपने अंदर झकना पड़ेगा. हम लुटे गये, हम पर गुलाम बने क्योकि हमे आसानी से बात जा सका.
हमने गैरो को दरारे दी,
जिसे बिखरा कर हमे तोडा गय, और हम आज विकसित से विकाशील हो गये.
समय का पहिए चलता है,
दिन ढलता है रात आती है और फिर दिन होता है!
अगर राम ने त्रेता में मर्यादा का पथ दिखाया, समय बदलते ही कृष्णा के रूप में यथार्थ वादी राजनीती सिखाई. महात्म गांधी जी ने भी कहा है,
"कोई भी संस्कृति जीवित नही रेह सकती, यदि वो अपने को अन्य से पृथिक रखना चाहे!" लोग कहते है कि आधुनिकता कि सबसे बड़ी समस्या है कि हमारी संस्कृति विज्ञानं जितनी प्रगति नहीं कर पाई! पर भारत के सन्दर्भ में ऐस नहीं है. हम सबसे पहले विकसित हुए इस पृथ्वी पर, इसीलिए सब देशो का दर्शन समझ पाए है! और,
अब ये पाया है कि समस्त धरती पर हर धर्म हर संस्कृति का एक ही अभिप्राय है,
मानवता कि रक्षा! इसिलए हमारा देश अनगिनत जटिलताओं के बीच होकर भी एक पंथनिरपेक्ष देश बना. और इस निरपेक्षयाता को बरकरार रखते हुए,
हमारी संस्कृति आज हमें हर संस्कृति का आदर करना सीखती है.
अतः हम सभी भारतीय मानवता कि रक्षा हेतु कटी बद्ध हो जाते है,
और
"मानवता" ही हमारा धर्म बन जाता है.
"भारत कि एकता का मुख्या आधार है एक संस्कृति, जिसका उत्साह कभी नहीं टूटता! इसकी विशेषता ये है कि भारतीय संस्कृति कि धरा निरंतर बहती रहती है!!"
बस हर भारतीय यदि हमारी संस्कृति के इस गुड़ को समझकर इसका आचरण करता है,
तो वेह ही सच्चा भारतीय है! "वासुदेव कुटुम्भकम" कहने वाले इस भारत वर्ष कि मिटटी का रंग है पानी जैसा...हर बर्तन में ढल जाएगा, हर रंग में रंग जाएगा, और अस्तित्व है जीवन जैसा!! हमें इस भारतीयता पर गर्व है| यह भारतीयता मेरी पहचान है|
जय भारत! जय जगत!
जय भारत! जय जगत!
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