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गौरवपूर्ण जीवन और मृत्यु का अधिकार

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Email : khyati.khush@gmail.com माया मरी न मन मरा, मर मर गये शारीर| आशा तृष्णा सब मरी, कह गये दास कबीर|| कबीर दास के इस दोहे में जीवन-मृत्यु चक्र के दर्शन का व्यापक भाव व्यक्त होता है| ऐसे तो मृत्यु शास्वत सत्य है, पर यह भी सत्य है की मृत्यु ही मनुष्य का सबसे बड़ा भय है| इतिहास गवाह है , मृत्यु पर विजय पाने हेतु मनुष्य ने हर काल में न न प्रकार के प्रयत्न किये है| जीवन रेखा को लम्बा बनाये रखने हेतु ज्ञान विज्ञान प्रौद्योगिकी द्वारा विश्व में आये दिन नई खोज होती है| ऐसे में क्या इच्छा मृत्यु एक निरर्थक वरदान है | बेहतर स्वास्थय के सुचिकांक हर देश के समग्र विकास के ग्योतक है| भारत जैसे विकासशील देश भी स्वास्थ्य सेवाओं पर सकल घरेलु उत्पाद का लगभग 5% खर्च करता है| [1]   आजादी (1947) के बाद भारत में life expectancy 35वर्ष थी, और अब सुधर कर लगभग 68वर्ष (2015) है| स्वस्थ्य जीवन सभी का अधिकार है| भारतीय संविधान सभी नागरिकों को अनुच्छेद 21 के अंतर्गत ‘राईट टू लिव’ का अधिकार भी देता है – जिसके तेहत देश का संविधान प्रत्येक नागरिक को सार्थक, संपूर्ण एवं गौरवशाली जीवन जीने का अधिकार