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समाज का आडम्बर – नारी पर पहला वार

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Email - khyati.khush@gmail.com उसकी चीखों पर सन्नाटा, और ख़ामोशी पर शोर है| उसके चिथड़ों में फैले समाज के आडम्बरों का ढेर है| ऐसे तो हर युग में नारी की अस्मिता को चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, परन्तु धर्म अधर्म की परिभाषाएं समाज में स्पष्ट रही है| पर आज समाज आडम्बर की मोटी चादर ओढ़ नारी के चीर हरण का न केवल तमाशबीन बल्कि उपहास करता है| रेप जैसा जघन्य अपराध मीडिया की टीआरपी और बुद्धिजीवी वर्ग के लिए भोजन मात्र बनता जा रहा है| आज़ाद भारत में नेशनल क्राइम ब्यूरो हर वर्ष रेप का आकड़े प्रकाशित करता है| रेप की खिलाफ आन्दोलनों का स्वतंत्र भारत में लम्बा इतिहास रहा है| भारत में रेप के खिलाफ आंदोलनों का इतिहास  वर्ष 1978-80 में जब समाज के रक्षकों के भक्षक बन हैदराबाद की रामीज़ा बी और महाराष्ट्र की 16वर्षीय मथुरा के साथ दुष्कर्म का मामला सामने आया तो पूरा देश उबलने लगा| चुकीं इन दोनों मसलों में पुलिस के कर्मचारी ही अपराधी रहे, देश में सरकार के खिलाफ इतना भयंकर प्रदर्शन हुआ की थल सेना की सहायता लेनी पड़ी| ये पहली बार था की उच्चतम न्यायलय से लेकर संसद तक रेप के खिलाफ सख्त कानून व्