समाज का आडम्बर – नारी पर पहला वार
Email - khyati.khush@gmail.com
तीन दशक बाद, वर्ष 2012 - दिल्ली में 23 वर्षीय
मेडिकल छात्रा के साथ चलती बस में जो हुआ उसे सुन पूरे देश की रूह काँप गयी|
अपराधियों ने न केवल उसका रेप किया बल्कि नारी के प्रति अपनी वासना और उत्तेज को
भयंकर अंत दिया| पूरा देश फिर से सड़कों पर था, कहीं मोमबत्तीयां तो कहीं सरकार
विरोधी नारों का शोर था| एक स्वर में फिर से ऐसे जघन्य अपराधों के खिलाफ सख्त कानून
और न्याय व्ययवस्था की मांग थी| इसी समय दिल्ली में ही एक 5 वर्षीय बच्ची के साथ
भी दुष्कर्म का मामला सामने आया था|
उसकी चीखों पर
सन्नाटा, और ख़ामोशी पर शोर है|
उसके चिथड़ों में
फैले समाज के आडम्बरों का ढेर है|
ऐसे तो हर युग में नारी की अस्मिता को चुनौतियों
का सामना करना पड़ा है, परन्तु धर्म अधर्म की परिभाषाएं समाज में स्पष्ट रही है| पर
आज समाज आडम्बर की मोटी चादर ओढ़ नारी के चीर हरण का न केवल तमाशबीन बल्कि उपहास करता
है| रेप जैसा जघन्य अपराध मीडिया की टीआरपी और बुद्धिजीवी वर्ग के लिए भोजन मात्र
बनता जा रहा है| आज़ाद भारत में नेशनल क्राइम ब्यूरो हर वर्ष रेप का आकड़े प्रकाशित
करता है| रेप की खिलाफ आन्दोलनों का स्वतंत्र भारत में लम्बा इतिहास रहा है|
भारत में रेप के खिलाफ आंदोलनों का इतिहास
वर्ष 1978-80 में जब समाज के रक्षकों के भक्षक
बन हैदराबाद की रामीज़ा बी और महाराष्ट्र की 16वर्षीय मथुरा के साथ दुष्कर्म का
मामला सामने आया तो पूरा देश उबलने लगा| चुकीं इन दोनों मसलों में पुलिस के
कर्मचारी ही अपराधी रहे, देश में सरकार के खिलाफ इतना भयंकर प्रदर्शन हुआ की थल
सेना की सहायता लेनी पड़ी| ये पहली बार था की उच्चतम न्यायलय से लेकर संसद तक रेप के
खिलाफ सख्त कानून व्यवस्था के लिए पुरे देश से एक स्वर में आवाज़ उठी थी|

कानूनी व्यवस्था का दायरा
भारत में इस सामाजिक पिशाच से लड़ने के लिए ऐसे
तो कई प्रावधान है| आईपीसी की धारा 375 और 376 के अंतर्गत रेप को संज्ञेय अपराध
माना गया है| सीआरपीसी की धारा 327(3) के अंतर्गत अपराधी को 7-10 वर्ष की सज़ा जो
आजीवन कारावास तक बढ़ सकती है, और जुर्माना परिभाषित है| वर्ष 2012 के केस के बाद
केंद्र सरकार ने नारी के खिलाफ अपराधों से लड़ने हेतु सख्त कानून व्यवस्था के लिए जस्टिस
वर्मा समिति का गठन किया| आईपीसी की धारा 376 (A) जोड़ कर भयंकर रेप और गैंग रेप के
अपराधों के लिए 20वर्ष तक की सज़ा या मृत्यु दंड तक का प्रावधान किया गया है| साथ
ही वर्ष 2016 में जुवेनाइल जस्टिस अधिनियम में संशोधन पारित कर 16-18 वर्ष के युवा
अपराधी जो जघन्य रेप कांड में संलग्न हो उन्हें भी सज़ा का प्रावधान किया गया है| ऐसे
ही पोस्को अधिनियम 2012 के अंतर्गत 18वर्ष से कम आयु की कन्याओं के साथ दुष्कर्म
करने पर 10वर्ष से आजीवन कारावास तक की सज़ा और जुर्माना परिभाषित है|
बे-लगाम दुष्कर्म अपराध
परन्तु यह महत्वपूर्ण प्रश्न है की क्या इन सब
कानूनों और आंदोलनों के बाद रेप के मामलों में कमी आई है| इतने वर्षों में ऐसा
नहीं है की अचानक रेप की घटनाएं बढ़ी हो| एनसीआरबी के आकड़े प्रति वर्ष चौकातें है|
नारी पर वार और भयंकर दुष्कर्म के मामले प्रति वर्ष अंकित होते रहे है| और यह आकड़े
वर्ष दर वर्ष बढ़ते जा रहे है| सबसे दुखद यह है की छोटी बच्चियां – यहाँ तक की
दूध-मुहि बच्चियां भी विकृत मानसिकता का शिकार हो रही है|
भारत में रेप के दर्ज मामले (एनसीआरबी 1973-2015)
|
||||||
वर्ष
|
1973
|
1983
|
1993
|
2003
|
2013
|
2015
|
कुल आकड़ें
|
2021
|
6019
|
11242
|
15847
|
33707
|
34651
|
16वर्ष से कम आयु के पीड़ित
|
783
|
1170
|
3393
|
3112*
|
13304*
|
16566*
|
*18वर्ष से कम आयु के पीड़ित
|
बढ़ते सामाजिक आडम्बर पर प्रश्न
ऐसे में हाल ही में चल रहे आंदोलनों और मीडिया
की उन्नाव और कथुआ में हुए रेप पीड़ित को न्याय दिलाने की होड़ पर कुछ प्रश्न
महत्वपूर्ण है| सबसे पहले यह संज्ञान में लेना ज़रूरी है की रेप पीड़ित को सामाजिक बहिष्कार
और उत्पीडन से बचाने हेतु भी कुछ कानून है, जिनकि सड़े आम धज्जियां उड़ रही है| सीआरपीसी
और एविडेंस अधियम के अंतर्गत रेप का मामलों की सुनवाई कैमरे के आगे बंद कमरे में
होनी अनिवार्य है, जिससे पीड़ित की पहचान छुपी एवं मामले की संवेदनशीलता बनी रहे|
वर्ष 2012 के रेप काण्ड के बाद, आईपीसी की धारा
228 (A) के अनुसार बलात्संग पीड़िता के पहचान को मुद्रित या प्रकाशित करने को
अपराध माना गया है जिसके लिए 2वर्ष की सज़ा और जुर्माना परिभाषित है| ऐसी ही पोस्को
अधिनियम की धारा 23 में मीडिया के लिए कहा गया है कि लैंगिक अपराध से पीड़ित की
पहचान, फोटो , नाम, आदि
के प्रकटन के अपराध के लिए 1वर्ष तक की क़ैद और जुर्माने का दंड दिया जा सकता है| जुवेनाइल
जस्टिस अधिनियम (2015 संशोधित) की धारा 74 (3) में भी ऐसे प्रकटीकरण के लिए 6महीने
की सज़ा और 2लाख रुपए तक के जुर्माने परिभाषित है|
इन सभी कानूनों की पैरवी 2012 के रेप मामले पर
सभी वर्ग से हुई| यह मीडिया ही थी जिसने पीड़ित का नाम निर्भया रखा था| जिस नाम ने
पूरे समाज को इस सामाजिक विकृति से लड़ने को एक जुट किया था| ऐसे में दुखद है की आज
कल मीडिया ने तुष्टिकरण की राजनीति को समर्थन देते हुए, रेप जैसे भयावेह अपराध में
पीडिता की पहचान वर्ग विशेष से करने में कोई कमी नहीं छोड़ी| रेप की सामाजिक विकृति
जिसने सभी वर्ग की बच्चियों का बचपन और महिलाओं की गरिमा पर प्रश्नचिह्न लगा रखा
है, ऐसे में ‘दलित महिला का रेप’, ‘अल्पसंख्यक बच्ची का रेप’ जैसे वर्गीकरण करके कहीं
हम इस सामाजिक विकृति को शेह तो नहीं दे रहे|
तुष्टिकरण की राजनीति के शिकार
जहाँ पूरे समाज को रेप को प्रोत्साहित करने
वाली विकृति से लड़ने को एक जुट करना चाहिए, मौजूदा कानून व्यवस्था के ढीले पेंचों
को कसने के लिए आवाज़ उठानी चाहिए, पीडिता और अपराधी को वर्ग विशेष में बांटकर क्या
मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग सच में न्याय के लिए लड़ रहे है या भटक गये है?! नारी की
अस्मिता को तार तार करने वाला ये समाजिक दानव को क्या अब इन आडम्बरों के साथ हम तुष्टिकरण
की राजनीति से और सींच रहे है?!
सत्ता और अधिकारों की अंधी लड़ाई में जब तक हम
नैतिक ज़िम्मेदारी और मौलिक कर्तव्यों की बात नहीं करेंगे, तब तक न किसी पीड़ित को
सही मायेने में न्याय मिलेगा न तो इस सामाजिक विकृति से आजादी| मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग को कानूनों के सख्त क्रियान्वयन, त्वरित कार्यवाही
और सीबीआई जैसी समर्पित इकाई द्वारा जांच पर जोर देना चाहिए| इसमें पोस्को और आईपीसी की धाराओं में यौन अपराधों हेतु और कठोर प्रावधान
करने पर चर्चा होनी चाहिए| देश में यौन शिक्षा
के बिन्दुओं और प्रारूप पर चर्चा होनी चाहिए| न की मामले को सांप्रदायिक रंग देकर
देश में दरारें शिल्प करनी चाहिए|
इन आडम्बरों से न तो सतत सत्ता बल मिलता है, न
ही न्याय, बल्कि नारी शक्ति का और हनन और समावेशी विकास में अवरोध उत्पन्न होता
है|
○khyati (Abridged version first published in Hindi Vivek, May 2018 Issue)
**********
Comments
Post a Comment