Lucknow Lok Sabha Elections'2014: Contestants on the floor.

Wednesday, 9 April 2014 by: Khyati Srivastava.


शाही सीट ‘लखनऊ’ के दावेदार

जहाँ देश में १६वी लोक सभा के गठन हेतु चुनावीं जंग ज़ोरो पर वहीं देश के राजनीतिक दृष्टिकोण से सबसे महत्वपूर्ण प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बह रही चुनावी बयार ने यहाँ का तापमान बढ़ा रखा है। कहने को तो लखनऊ को भाजप का एक गढ़ माना जाता है, क्योकि यहाँ ७८.१९% आबादी हिन्दू है। फिर माननीय अटल बिहारी जी कि ख्याति से भाजप ने १९९१ से अब तक लखनऊ का दामन नहीं छोड़ा है। यह श्री अटल जी की ही लोकप्रियता है कि लखनऊ के जनदेश से पहले वह पाँच बार सांसद चुने गए फिर २००९ में श्री लालजी टंडन। बहरहाल वर्ष २०१४ के आम चुनाव ख़ास है। बीते वर्ष में पांच राज्यो के विधान सभा चुनावो ने रोचक रूप लिया था। वैसे ही यह आम चुनाव भी देश में बदलाव कि लहर से लोगो में उत्सुकता तथा चुनावी मिजाज़ को रोचक बनाया हुआ है। लखनऊ भी इस रोचकता से वंचित नहीं है।

जहाँ भाजप ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री राजनाथ सिंह को मैदान में उतारा है, वहीं कांग्रेस से पार्टी प्रदेश अध्यक्ष श्री रीता जोशी को लखनऊ से टिकट मिला है। भाजप ने श्री राजनाथ जी को लखनऊ से खड़े करने के लिए क्या माथापीची कि है सारा देश जनता है। इन प्रयासो से साफ़ है कि २३ वर्ष से लगातार जीतने के बाद भी पार्टी किसी भी तरह का गुरुर करके लखनऊ कि सीट हाथ से गवाना नहीं चाहती। वहीं श्री रीता दीदी लखनऊ कैंट छेत्र से विधायक भी है तथा लोगो का उनके प्रति विश्वास देखकर कांग्रेस के पास इस छेत्र से कोई और उत्तम एवं उचित प्रत्याशी नहीं है। पिछले आम चुनाव में दीदी को मात्र ७% वोटो से हार का सामना करना पडा था।

देश के आम चुनावो में उत्तर प्रदेश के चुनाव सबसे अलग पहचान रखते है। क्योकि अन्य राज्यो से भिन्न यहाँ कि सियासी लड़ाई दो या तीन नहीं बल्कि चार पालो में बटी है। पिछले चुनावो को मद्देनज़र रखते हुए इस चुनावो को देखे तो सत्ता के दावेदारो को चार QUADRANTS में बाट सकते है। पहले में भाजप, दूसरे में कांग्रेस, तीसरे में बसपा तथा चौथे में सपा। पिछले आम चुनावो में भाजप को ३४.९३% वोट मिले थे, तो कांग्रेस को २७.९३%, वहीं बसपा २२.८८% तीसरे पायदान पर रही। और सपा १०.५२% वोटो से चौथे नंबर पर रही।



अब इन चुनावो के लिए इन QUADRANTS पर नज़र डाले तो भाजप और कांग्रेस कि बात तो हम ऊपर कर चुके है। बात करे तीसरे नंबर पर रही बसपा कि तो याद करे पिछली बार बसपा ने आदरणीय बाबू बनारसी के सुपुत्र श्री अखिलेश दस गुप्त को लखनऊ से टिकट दिया था और उनकी साफ़ छवि एवं विकास-पुरुष कि उपाधि से बसपा ने पारमपारिक वोटो के इलावा लखनऊ के एडुकेटेड और उप्पर कास्ट वोट आसानी से जीत लिए थे। ये पैतरा इस बार सपा ने सदउपयोग में लाया है। "उत्तर प्रदेश से उत्तम प्रदेश" का नारा देकर २०१२ के विधान सभा चुनावो में सपा ने भारी विजय हासिल कि और उन चुनावो में विकास कि राजनीती कि घोषणा करते हुए साफ़ छवि का चेहरा लाया। उनमे सबसे ऊपर नाम था आईआईएम अहमदाबाद के प्रोफेसर अभिषेक मिश्रा। इस युवा नेता ने विधायक बनने के बाद दो साल में "फ्लाईओवर मंत्री" तथा "आदर्श युवा विधायक" कि उपाधि प्राप्त की। सपा ने २०१४ के आम चुनावो में लखनऊ से अपना दावेदार इन्हे ही घोषित किया है। हालाकि पहले सपा ने अपने अनुभवी साफ़ छवि के राष्ट्रीय सचिव श्री अशोक बाजपाई जी को टिकट दिया था, परन्तु भाजप कि बढ़ती लेहर को राजधानी में टक्कर देने के लिए २७ मार्च को प्रत्याशी बदल दिया गया। इस फैसले के पिछे सिर्फ प्रोफेसर अभिषेक कि छवि ही नहीं पर यह भी ध्यान में रखा गया होगा कि २०१२ के विधायकी चुनाव में भाजप के गढ़ कहे जाने वाले लखनऊ उत्तर से प्रोफेसर अभिषेक मिश्रा ने भारी मतों से विजय हासिल करी थी, तथा उनके पिता रिटायर्ड IAS श्री जी एस मिश्रा और उनका परिवार ब्राह्मण वोटो का सुदृण दावेदार हो सकता है।

वहीं बसपा ने इस बार श्री नकुल दुबे को लखनऊ से टिकट दिया है। श्री दुबे महोना छेत्र से विधायक है तथा पिछली सरकार में राज्य के नगर विकास मंत्री भीरह चुके हैं| बसपा के पारम्परिक मतों के इलावा ब्राह्मण मतों के अच्छे दावेदार हो सकते है। पर क्योकि लखनऊ छेत्र में उनके चेहरे से लोग अनभिग्य है तथा बसपा के राजधानी कि ज़मीन पर प्रयास भी ठन्डे है, तो सम्भावना है कि बसपा इस बार कुछ पायदान नीचे आ जाए और लखनऊ में सपा को आगे जाने का मौका मिल जाए। चार पालो कि बात के बाद अब बात कि जाए देश कि बहुचर्चित पार्टी "आप" की, तो पूरे देश कि राजनीती में रोचकता बढ़ाने वाली पार्टी से लखनऊ भी छूटा नहीं है। बहुत सोचते विचरते आप पार्टी ने श्री लाल बहदुर शाश्त्री के पौत्र श्री आज़ाद शाश्त्री फिर मौलाना कलबी को पीछे छोड़ते हुए अभिनेता जावेद जाफरी को लखनऊ से टिकट दिया है। पिछली बार २००९ में यह स्ट्रेटेजी सपा ने अपनाते हुए सामाज-सेविका एवं अभिनेत्री नफीसा अली को टिकट दिया था। आप क्रांति कि महशाल वैसे ही यहाँ कि राजनीती को ज़यादा प्रभावित नहीं कर थी, फिर दिल्ली में AK-49 के परफॉरमेंस से निराश उत्तर प्रदेश कि जनता के पास अनेको विकल्प है। अतः लखनऊ कि जनता श्री जावेद जाफरी को सपोर्ट तो करेगी पर वह कितने वोट में बदलेगा यह कह पाना मुश्किल है। हलाकि मुस्लिम वोटरो में से शिया वोट शायद "आप" के खाते में चले जाये, क्योकि अभी तक अन्य कोई भी पार्टी लखनऊ के मुस्लिम समुदाय के वोटो को एक जुट करने में सफल नहीं होती दिख रही है। सभी दल इस अहम एवं निर्णायक वोट-बैंक को अपने पाले में लाने के अथक प्रयास में तो लगे है, किन्तु श्री जावेद जी कि लोकप्रियता के कारण और आप कि क्रांति से बदलाव का विश्वास कि आस से इस समुदाय के कुछ प्रतिशत वोट तथा कुछ और युवा वोट “आप” में जा सकता है। अतः 'आप' को लखनऊ के मैदान में एक अलग QUADRANT में डालकर नहीं देखा जा सकता अपितु इसे चारो QUADRANTS में 'वोट-कटर' के रोल में देखा जा सकता है। सबसे ज़यादा गौर करने वाली बात है कि कांग्रेस के प्रति देश व्यापक 'एंटी-इंकम्बेंसी' के बावजूद लखनऊ के सत्ता के गलियारो में कांग्रेस अब भी मैदान में मजबूत है। कारण सिर्फ रीता दीदी कि अच्छी पकड़ ही नहीं, छेत्र में उनका अच्छा काम, पहाड़ी एवं गोरखा वोटो का कांग्रेस कि तरफ ध्रुवीकरण जैसे भी कुछ कारण है तथा सबसे बड़ा कारण है वोटो का बिखराव जिससे अन्य पार्टिया नीचे जा सकती है और कांग्रेस अपनी ही जगह पर रहते हुए ऊपर हो सकती है। चारो दलो कि मौजूदा स्थिति देखते हुए चारो पालो का ग्राफ बनाया जाये तो चार में से तीन quardrant बड़े तथा एक छोटा होता बनाया जा सकता है। बसपा के अब तक के ठन्डे प्रयासो को देखते हुए यह छोटा होता quardrant होगा बसपा का, क्योकि फिलहाल श्री दुबे सिर्फ बसपा के ट्रेडिशनल वोट तथा अपने छेत्र के आस-पास के उप्पर-कॉस्ट वोट हासिल करते प्रतीत हो रहे है। अतः एक तरह से लखनऊ कि चुनावी घमासान को त्रिअंगुलर भी कह सकते है।

पर यह हर तरह से सर्वव्यापक ज़मीनी सत्य नहीं होगा। सबसे बड़ी बात कि चुनावी माहोल कभी भी और गर्ममाकर पलट सकता है।
बहरहाल, सभी दलो ने देश के दिल (दिल्ली) पर राज करने के लिए उत्तर प्रदेश का दिल (लखनऊ) जीतने के लिए बहुत विचार करके अपने धुरंधर उतरे है। देखना है कि लखनऊ का जनादेश इस बार किसे अपना सांसद बनाकर दिल्ली भेजता है। आने वाली ३० अप्रैल को लखनऊ कि जनता सभी प्रत्याशियो के सपनो का भविष्य बटन दबाकर निर्धारित कर देगी। यहाँ बात एक नए बटन कि जो आम चुनावो में पहली बार इस्तेमाल होगा। "NOTA" माने 'नन आफ् द अबोव' मतलब 'इनमे से कोई नहीं' क्या लखनऊ कि जनता इस बटन का प्रयोग करेगी? बहुत मुश्किल से शायद एकदम तुच्छ प्रतिशत ही इस बटन का उपयोग करे क्योकि जनता के पास अनेको विकल्प है तथा यहाँ सत्ता में रूचि एवं विश्वास ढूढ़ने वाली जनता है।

इस बार राजधानी में मतदान प्रतिशत भी बढ़ने के आसार है क्योकि चुनाव आयोग के प्रबल प्रयासो से जनता इस बार सत्ता में निर्णायक पद लेने को तत्पर है तथा इस बार एक बड़ा भाग नए युवा वोटरो का है जो देश में बदलाव लाना चाहते है और उसमें अपनी भागेदारी सुनिश्चित करना चाहते है। पिछले बार के मुकाबले इस बार दोगुना मतदान होने की आशंका है| अब तक उत्तर प्रदेश में हुए चुनावो में लोगो की भागेदारी को मद्देनज़र रखते हुए इस बार ३५% से उठकर राजधानी में मतदान का ग्राफ ५७-६५% तक जाने के आसार हैं|

Comments

Popular posts from this blog

Agenda Elections 2019: Chowkidar vs Berozgar - Catalysing the Raging Indian Youth for a mature Democracy

Role of 'Independents' in Indian Elections

Beti Bachao, Beti Padhao - Count Ghar ki Laxmi's integral role